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देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरूप ज्योर्तिमय है।

 देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरूप ज्योर्तिमय है। 

नौ दुर्गा के द्वितीय स्वरुप को ब्रह्मचारणी के नाम से जाना जाता है। ब्रह्मचारिणी देवी दुर्गा का दूसरा अवतार है। ब्रह्म शब्द का अर्थ तपस्या है ब्रह्मचारिणी अर्थात तपका आचरण करने वाले इन देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं भव्य है इनके दाहिने हाथ में जबकि माला एवं बाएं हाथ में कमंडलु है यह भगवती का स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल देने वाला है।

 इनकी उपासना से भक्तों में तप, त्याग, वैराग्य ,सदाचार ,संयम की वृद्धि होती है। जीवन की कठिन समय मे भी उसका मन कभी भी कर्तव्य पथ से विचलित नहीं होता है। देवी की कृपा से सर्वत्र सिद्धि तथा विजय की प्राप्ति होती है। ब्रह्मचारिणी हमेशा नंगे पैर रहती हैं नवरात्रि के दूसरे दिन साधक अपने स्वाधिष्ठान चक्र में ध्यान कर मंत्र जाप करें।
















ब्रह्मचारिणी देवी की पूजा विधि

देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा करते समय सबसे पहले हाथों में एक फूल लेकर उनका ध्यान करें और प्रार्थना करते हुए नीचे लिखा मंत्र बोलें।

श्लोक

दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलु। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ।।

ध्यान मंत्र

वन्दे वांछित लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम्।

जपमालाकमण्डलु धराब्रह्मचारिणी शुभाम्॥

गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम।

धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालंकार भूषिताम्॥ 

परम वंदना पल्लवराधरां कांत कपोला पीन।

पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्।।

इसके बाद देवी को पंचामृत स्नान कराएं, देवी को सफेद कमल और सुगंधित फूल चढ़ाएं। अक्षत, कुमकुम, सिन्दुर, अर्पित करके इन मंत्रों से प्रार्थना करे ।


1. या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

2. दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।

देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।

 

इसके बाद देवी मां को शक्कर का भोग चढ़ाएं । मां को शक्कर का प्रसाद बहुत ही प्रिय है। प्रसाद के बाद पान सुपारी भेंट करे मां की कपूर से आरती उतारे और अपने मंगल कामना की उनसे प्रार्थना करे।


 नवरात्रि के द्वितीय दिन इस मंत्र का जाप करना चाहिए।

मंत्र

१. ओम ब्राम ब्रीम ब्रूम ब्रह्मचरणीयै नमः

२. या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

 



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