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माँ धूमावती का सबसे डरावना मंदिर जहाँ सिर्फ विधवा महिलाएं ही प्रवेश कर सकती है।

 मां धूमावती का सबसे डरावना मंदिर जहां सिर्फ  विधवा महिलाएं ही प्रवेश कर सकती हैं।

मध्यप्रदेश: मां धूमावती का मंदिर मध्यप्रदेश, दतिया जिले पीतांबरा शक्ति पीठ के प्रांगण में स्थित है। पूरे भारत में मां धूमावती का यहां ये एक मात्र मंदिर है।माता धूमावती 10 महाविद्याओं में से एक सातवीं उग्र शक्ति हैं। कहते हैं कि धूमावती का कोई स्वामी नहीं है। इसलिए यह विधवा माता मानी गई है। मां धूमावती महाशक्ति स्वयं नियंत्रिका हैं। ऋग्वेद में रात्रिसूक्त में इन्हें 'सुतरा' कहा गया है। अर्थात ये सुखपूर्वक तारने योग्य हैं। 
दश महाविद्या में से सातवा स्वरूप धूमावती का है। पीतांबरा मां के प्रांगण में स्थित मां धूमावती के मंदिर से कोई पुकार अनसुनी नही जाती राजा हो या रंक मां सब पर एक समान कृपा करती है। मां स्वेत वस्त्र धारणी है मां का वाहन कौआ माना जाता हैं।
शनिवार के दिन यहां ज्यादा भीड़ लगती है दर्शन के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। खास तौर पर ग्वालियर, झांसी आदि पड़ोसी जिलों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु शनिवार को मां के दर्शन करने पहुंचते हैं।
मां को तामसी भोजन का प्रसाद लगता है । उन्हें प्रसाद के रूप में नमकीन, कचौड़ी, समोसा, मगौड़ा आदि अर्पित किए जाते हैं। शनिवार के दिन मंदिर के प्रसाद काउंटर और अन्य मिष्ठान दुकानों पर मिष्ठान के अलावा नमकीन व्यंजन भी बेचे जाते हैं।
सुहागन स्त्रियों के लिए धूमावती के दर्शन वर्जित हैं। इस संबंध में मंदिर में बोर्ड भी लगे हैं जिन पर लिखा है कि सौभाग्यवती स्त्रियां धूमावती के दर्शन न करें।     

    

कैसे हुआ मां धूमावती का अवतार

पौराणिक कथाओं के अनुसार   एक बार मां पार्वती को बहुत जोर से भूख लगी, उस वक्त कैलाश पर्वत पर खाने को कुछ नहीं था ।  भगवान शिव से उन्होंने भोजन की मांग की लेकिन भगवान  शिव  समाधि में लीन थे। बार-बार खाने की मांग करने पर भी भोलेनाथ नीलकंठ ने कोई जवाब नहीं दिया । भूख की तीव्रता से बैचेन हो कर गुस्से में माता पार्वती, भगवान शिव को ही निगल गयी । शिव भगवान के गले में विष होने की वजह से माता के शरीर से धुंआ निकलने लगा । इसी कारण  माता पार्वती का नाम  “धूमावती” पड़ा  । इसके बाद भगवान शिवजी अपनी माया के द्वारा पेट से बाहर आते हैं और माता से कहते हैं कि धूम से व्याप्त देह होने के कारण आपके इस स्वरूप का नाम धूमावती होगा।
यह भी कहा जाता है कि जैसे ही पार्वती भगवान शिव को निगल लेती हैं उनका स्वरूप एक विधवा जैसा हो जाता है। इसके अलावा शिव के गले में मौजूद विष के असर से देवी पार्वती का पूरा शरीर धुंआ जैसा हो गया। उनका पूरी काया श्रृंगार विहीन हो गई। तब शिवजी ने अपनी माया से पार्वती को कहते हैं कि आपने मुझे निगलने के कारण अब आप विधवा हो गई है। जिस कारण से आपका एक नाम धूमावती भी होगा। 
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार ऋषि दुर्वासा, भृगु और परशुराम आदि की मूल शक्ति धूमावती है। सृष्टि कलह की देवी होने के कारण इन्हें कलहप्रिय भी कहा जाता है। देवी का मुख्य अस्त्र है सूप जिसमें ये समस्त विश्व को समेट कर महाप्रलय कर देती हैं। इन्हें अभाव और संकट को दूर करने वाली मां कहा गया है। चतुर्मास देवी का प्रमुख समय होता है।  जब इनकी साधना की  है। इनकी साधना से जीवन में निडरता और निश्चिंतता आती है। इनकी साधना से साधक का  मन और शरीर पवित्र हो जाता है उसमे आत्मबल का विकास होता है। और आगे चल कर साधक विश्व में ख्याति प्राप्त करता है । 

धूमावती साधना 

अब धूमावती साधन के मंत्र , जाप,यंत्र,जप होम और कवच आदि का वर्णन किया निम्न किया जाता है।

धूमावती ध्यान 

विवर्णा चंचला रूष्टा दीर्घा च मलिनाम्ब्रा ।
विवरण कुंतला रुक्षा विधवा विरलद्विजा ।।
काक ध्वजा रथा रूढ़ा  विलम्बितपयोधरा ।
सूर्यहस्तत रूक्षाक्षी धृतहस्ता  व्राणविता ।।
प्रवृद्धघोणा तु भृशं कुंटला कुटिलेक्षणा ।
क्षुतपिपासर्द्दिता नित्यं भयदा कलहप्रिया।।

धूमावती स्तव

भद्रकाली  महाकाली डमरुवाद कारिणी।
स्फारीतन्यना चैव टकटंकीतहासनी।।
धूमावती जगतकतरी शूर्पहस्ता तथैव च।
अष्टनामात्मकम स्त्रोतम य: पठेद भक्ती संयुत:।।
तस्य  सर्वार्थसिद्धि स्यातसत्यम सत्यम हि पार्वती ।।

धूमावती कवच

धूमावती मुखम पातु धूं धूं स्वाहा स्वरूपिणी।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुंदरी।।
कल्याणी हृदयम पातु हसरीम नाभिदेशके।
सर्वांग पातु देवेसी निष्कला भगमलिनी।।
सुपुण्यम कवचम दिव्यम य: पठेद भक्ति सम्युत:।
सौभाग्यंतुलम प्रपाय चांते देवी पुरम ययौ।।

धूमावती मंत्र:

धूं धूं धूमावती स्वाहा।
एक लाख मंत्र जपने से इसका पुरस्चरण होता है तथा गिलोय की समिधाओ से उसका दशांश होम करे
(संकलन: आचार्य श्री सोमनाथ महाराज  रॉय , कामाख्या शक्तिपीठ)

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