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मां कात्यायनी अमोघ फलदायनी है

मां भगवती का छठा स्वरुप कात्यायनी है ,राक्षस महिषासुर को नष्ट करने के लिए, मां भगवती ने महर्षि के कात्यायन के घर जन्म लिया था जिसके कारण इन्हें कात्यायनी कहा जाता है ।

देवी कात्यायनी शेर पर सवार हैं और  इनकी चार भुजाएं हैं। देवी कात्यायनी अपने बाएं हाथों में कमल का फूल और तलवार रखती हैं और अपने दाहिने हाथों से अभय और वर प्रदान करती है। 

                               (मां कात्यायनी)

नवरात्री के छठे दिन मां की प्रतिमा या फिर कलश में मां कात्यानी का ध्यान करके पूजा करनी चाहिए ।

मां को लाल रंग के पुष्प विशेष रूप से गुलाब के अति प्रिय है इस लिए मां लाल पुष्पों का हर चढ़ना चाहिए। तत्पश्चात मां को शहद का भोग अर्पित करना चाहिए। उसके बाद मां की पंचदीप या फिर कपूर से आरती उतारनी चाहिए।

 महर्षि कात्यायन की पुत्री  अमोघ फलदायनी हैं। मां दुर्गा के इस स्वरूप की पूजा करने से  विवाह में आ रही बाधाए दूर होती है। उत्तरप्रदेश के मथुरा के निकट वृंदावन के भूतेश्वर स्थान पर माता के गुडीच्छ और चूड़ामणि गिरे थे।  

यहीं पर मां  कात्यायिनी मंदिर, शक्तिपीठ भी है जहां के बारे में कहा जाता है कि यहां पर मा भगवती के केश गिरे थे। वृन्दावन स्थित श्री कात्यायनी पीठ 51 पीठों में से एक अत्यन्त प्राचीन सिद्धपीठ है।

द्वापर युग में गोपियों ने भगवान श्रीकृष्ण को पति के रूप में पाने के लिए इन्ही माता कात्यायनी की पूजा की थी।

प्रार्थना

  चन्द्रहासोज्ज्वल्करा शार्दूलवरवाहना।

  कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी॥

स्तुति

  या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥


ध्यान

  वन्दे वाञ्छित मनोरथार्थ चन्द्रार्धकृतशेखरम्।

  सिंहारूढा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्विनीम्॥

  स्वर्ण वर्णाआदिचक्र स्थिताम् षष्ठम दुर्गा त्रिनेत्राम्।

  वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥

  पट्टम्बर पाठां स्मेरशक्ति नानालङ्कार भूषिताम्।

  मंजीर, हार, केयूर, किङकिनि, रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥

  प्रसन्नवदना पल्लवधरां कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्।

  कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम्॥

स्तोत्र

  कंचनभां वरभयं पद्मधरा मुक्तोज्जवलां।

  स्मेरमुखी शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोऽस्तुते॥

  पट्टम्बर पाठां नानालङ्कार भूषिताम्।

  सिंहस्थिताम् पद्महस्तां कात्यायनसुते नमोऽस्तुते॥

  परमानन्दमयी देवी परब्रह्म परमात्मा।

  परमशक्ति, परमभक्ति, कात्यायनसुते नमोऽस्तुते॥

  विश्वकर्ती, विश्वभारती, विश्वहर्ति, विश्वप्रीता।

  विश्वचिंता, विश्वातीता कात्यायनसुते नमोऽस्तुते॥

  कां बीजा, कां जापानन्दकां बीज जप तोषिते।

  कां बीज जपदासक्ताकां का सन्तुता॥

  कंकरहर्षिणीका धनदाधनमासना।

  कां बीज जपकारिणीबी बीज तप मानसा॥

  कां कारिणी का मंत्रपूजिताका बीज धारिणी।

  कां कीं कुँकै क: ठ: छ: स्वाहारूपिणी॥

मंत्र 

ॐ देवी कात्यायन्यै नमः॥

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